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पिछले ङेढ वर्ष के शासन ने कई ऐसे निर्णय लिये जिस को विपक्ष और जनता के दबाव व विरोध के कारण वापस लेना पङा , भूमि अधिग्रहण बिल , श्रम कानूनों में बदलाव की कोशिश हो या फिर अब एनक्रिप्शन नीति पर सरकार का पीछे हटना पङा।
सरकार द्वारा नयी एनक्रिप्शन नीति जो नया मसौदा जारी किया गया था उस के तहत सोशल मीडिया समेत सभी तरह के संदेशों को 90 दिन तक सुरक्षित रखने को अनिवार्य किया गया था।इस मसौदे के तहत व्यवसायिक इकाइयों, दूरसंचार परिचालकों और इंटरनेट कंपनियों को लिखित संदेशों को उसी रूप में 90 दिनों तक सुरक्षित रखने का प्रावधान गया था और क़ानून व्यवस्था से जुङी एजेंसियां जब भी इन्हें दिखाने को कहेंगी उन्हें यह मुहैया कराना होगा।ऐसा नहीं करने पर क़ानूनी कारवाई होती।
एनक्रिप्शन नीति के इस मसौदे सरकार के खिलाफ विरोध शुरू हुआ । लोगों का कहना था कि नया मसौदा लोगों की निजता में दखल है।इस के चलते मंगलवार की सुबह सरकार ने एक नयी परिशिष्ट से साफ किया कि वाटसएप, फेसबुक, ट्विटर, भुगतान गेटवे, ई-वाणिज्य, और पासवर्ड आधारित लेन देन को इससे अलग रखा गया है।परंतु इसके कुछ घंटे बाद दूरसंचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद खुद सामने आये और उन्होंने बताया कि मंत्री मंडल ने राष्ट्रीय एनक्रिप्शन नीति को वापस ले लिया है।
उन्होंने इस बात को साफ किया कि उचित तरीके से विचार कर के नया मसौदा लाया जायेगा जिस के तहत उपयोग करने वाले आम आदमी नहीं आएंगे।नये आने वाले मसौदे में सरकार स्पष्ट करेगी कि कौन सी सेवाएं और उपयोग करने वाले इसके दायरे में आएंगे या किन्हें छूट मिलेगी।
परंतु इस घटना क्रम से यह बात स्पष्ट नहीं हुई कि आखिर इतनी जल्दबाज़ी में नयी एनक्रिप्शन नीति लाने की आवश्यकता क्या थी? जिस प्रकार से सोशल मीडिया समेत इंटरनेट के माध्यम से उपयोग होने वाली संदेश वाहक माध्यम, ई-मेल व व्यापारिक लेन देन इस के दायरे में आ रहे थे उस से इस मसौदे का विरोध होना स्वाभाविक था।
अखिर इतना संवेदनशील फैसला किस के आदेश पर हुआ? इस प्रश्न का उत्तर मिलना बाक़ी है।
विपक्ष और जनता के विरोध के बाद सरकार ने अपने क़दम पीछे तो हटा लिये परन्तु सवाल यह है कि खाने,पहनने, देखने, लिखने, बोलने पर बैन की संस्कृति को बढावा दे कर सरकार देश में किस तरह का विकास करना चाहती है।सरकार को हर बार फैसले ले कर बैकफुट पर क्यों जाना पङ रहा है?
अब वक्त आ गया है कि सरकार को अपनी नीति और नीयत दोनों स्पष्टता दिखानी होगी।सरकार को समझना होगा कि लोकतंत्र पाबंदियां लगा कर नहीं बल्कि जनता को आधिकार दे कर मज़बूत किया जा सकता है
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